Sunday 9 December 2012

पार्श्वगायक मुकेश के जन्मदिवस पर विशेष प्रस्तुति 

सावन का महीना और मुकेश का अवतरण

हिन्दी फिल्मों में १९४१ से १९७६ तक सक्रिय रहने वाले मशहूर पार्श्वगायक स्वर्गीय मुकेश फिल्म-संगीत-क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ठ स्तर की गायकी के लिए हमेशा याद किये जाते रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में उन्हें सर्वाधिक ख्याति उनके गाये दर्द भरे नगमों से मिली। इसके अलावा उन्होने कई ऐसे गीत भी गाये हैं, जो राग आधारित गीतों की श्रेणी में आते हैं। २२ जुलाई, २०१२ को मुकेश जी का ८८-वां सालगिरह है। आज उनके जन्मदिवस की पूर्वसंध्या पर रेडियो प्लेबैक इंडिया के नियमित पाठक और मुकेश के अनन्य भक्त पंकज मुकेश, इस विशेष आलेख के माध्यम से मुकेश के गाये गीतों की चर्चा कर रहे हैं। साथ ही आपको सुनवा रहे हैं उनके गाये कुछ सुमधुर गीत। 

 मित्रों, मानसून के आने से ऋतुओं की रानी वर्षा, अपने पूरे चरम पर विराजमान है। दरअसल सावन के महीने और पार्श्वगायक मुकेश के बीच सम्बन्ध बहुत ही गहरा है। मुकेश जी की बहन चाँद रानी के अनुसार २२जुलाई, १९२३ को रविवार का दिन था, धूप खिली थी और मुकेश के जन्म के साथ ही अचानक सावन की रिमझिम बूँदें बरस पड़ीं और पूरा माहौल खुशनुमा हो गया। आइये शुरुआत करते हैं उन्हीं के गाये एक गीत से जो अक्सर घर पर किसी बच्चे के जन्म पर गया जाता है और हर माता-पिता अपने नवजात शिशु से ऐसी ही आशाएं लगाते होंगे जो इस गीत में विद्यमान है। 

ऐ मेरी आँखों के पहले सपने-मुकेश और लता-मन मंदिर 1971

आज पूरे भारतवर्ष में मुकेश को "दर्द भरे गीतों का जादूगर" कहा जाता है मगर राग आधारित गीतों से भी उनका लगाव रहा है। जब किसी एक साक्षात्कार में मुकेश जी से पूछा गया कि- "आप ने यूं तो सैकड़ों गाने गाये हैं मगर आप को किस तरह के गीत सबसे ज्यादा पसंद हैं?" इस पर उनका जवाब था- "अगर मुझे दस लाइट सॉंग (हलके फुल्के गाने) मिले और एक सैड (दर्द भरा गीत) मिले तो मैं दस लाइट छोड़कर एक सैड पसंद करूँगा और अगर मुझे दस सैड गाने मिले और एक क्लासिकल (शास्त्रीय), तो मैं दस सैड छोड़ कर एक क्लासिकल पसंद करूँगा!" तो आइये उन्ही का गाया एक राग आधारित गीत सुनवाते हैं। १९४८ में नौशाद के संगीत निर्देशन की एक फिल्म थी ‘अनोखी अदा’। इस फिल्म में मुकेश ने राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित एक बेहद सुरीला गाना गाया था- ‘कभी दिल दिल से टकराता तो होगा...’। इस राग पर आधारित जो भी स्तरीय गीत अब तक बने हैं, उनमें यह गीत भी शामिल है। फिल्म में मुकेश के गाये इस गीत का एक दूसरा संस्करण भी है, जिसे शमशाद बेगम ने गाया है। कहने की जरूरत नहीं है कि गीत के दोनों संस्करण में दरबारी के सुर स्पष्ट उभर कर आते हैं। 

कभी दिल दिल से टकराता तो होगा-अनोखी अदा राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित

यह भी एक विचित्र संयोग है कि मुकेश ने राग तिलक कामोद पर आधारित लगभग ७-८ गाने गाये हैं और ये सभी गाने बहुत लोकप्रिय हुए है। अब आइये आपको सुनवाते हैं, राग तिलक कामोद पर आधारित उनके प्रारंभिक दौर का एक सुमधुर गीत, जो उनके जीवन का पहला हिट गीत- "दिल जलता है तो जलने दे" (पहली नज़र) के आने से कुछ महीने पहले का है। फ़िल्म 'मूर्ति' का यह गीत राग तिलक कामोद पर आधारित है और इस गीत में उनकी सह-गायिकाएँ है- खुर्शीद और हमीदा बानो। संगीत बुलो सी रानी का है। 

फिल्म ‘मूर्ति’ : "बदरिया बरस गई उस पार..." : राग तिलक कामोद पर आधारित  

दोस्तों, समय सावन के महीने का है और मुकेश जी का जन्म भी इसी महीने में हुआ था, तो क्यूँ न सावन के मौसम पर उनका कोई गीत सुन लें। ऐसे अवसर के लिए सबसे पहला गीत जो हर किसी संगीत-प्रेमी या मुकेश-प्रेमी के मन में आता होगा, वह है फ़िल्म 'मिलन' का गीत "सावन का महीना पवन करे सोर..."। इस गीत के शुरुआत में आपने मुकेश और लता के बीच का संवाद जरूर पसंद किया होगा। कितने आश्चर्य की बात है कि लता जी "शोर" शब्द का सही उच्चारण कर रही हैं, मगर मुकेश हैं कि उन्हें "शोर" के बजाय "सोर" कहने के लिए आग्रह कर रहे हैं। दरअसल फिल्म की कहानी के अनुसार ही ऐसा संवाद रखा गया है, जिसमें नायक गाँव का एक भोला-भाला, अनपढ़ इंसान है जो नायिका को गाने की शिक्षा दे रहा है, और पूरे उत्तर भारत के गाँवों के लोग 'श' को 'स' उच्चारण करते है, जिसको परदे पर और परदे के पीछे बखूबी प्रस्तुत किया गया है। इस गीत से जुड़ी परदे के पीछे की एक और बात मैं आप सब को बताना चाहता हूँ। हमारे साथी राजीव श्रीवास्तव (लेखक, कवि, गीतकार और फिल्मकार) जब संगीतकार-जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के प्यारेलाल जी से पूछा तो पता चला कि जब ये गीत रिकॉर्ड होना था, उसी दौरान मुकेश जी को दिल का दौरा पड़ गया। अस्पताल से उपचार के बाद गाना रिकॉर्ड होना था, सभी तैयारियां हो गई। लता और मुकेश दोनों ने अभ्यास कर लिया। मगर आज हम इस गीत को जिस प्रकार सुनते हैं, शायद उसका प्रारूप ऐसा न होता, अगर मुकेश जी न होते। असल में जब नायक, नायिका को गाने का अभ्यास करा रहा था, उस समय आलाप, नायक को अर्थात्‍ मुकेश जी को लेना था। मगर उनकी बीमारी को ध्यान में रखते हुए संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी में यह हिम्मत नहीं हुई कि आलाप के लिए उनसे आग्रह करें, जो मुकेश के लिए कष्टदायक हो सकता था। मगर मुकेश जी संगीत के प्रति समर्पित जीवट के गायक थे। वो इस बात को भली-भांति जान गए और अभ्यास के दौरान लता से शर्त भी रख ली कि अगर मेरा आलाप उपयुक्त नहीं हुआ तो वो लता को १०० रुपये देंगे, नहीं तो लता देंगी। संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी को इस बात की बिलकुल भनक भी नहीं हुई कि कुछ बदलाव भी होने वाला है। गाना रिकॉर्ड होने से ठीक पहले वायदे के मुताबिक मुकेश जी ने अपने बटुवे से १०० रुपये का एक नोट निकाल कर, लता को चुपके से इशारा करते हुए शर्ट की जेब में डाल लिया। गाना शुरू हुआ, दोनों लोग गाने लगे, पहला अंतरा अपने अनुसार हुआ मगर जैसे ही दूसरा अंतरा पूरा हुआ, मुकेश जी ने आलाप लेना शुरू कर दिया। यह निश्चित किया गया था कि आलाप के स्थान पर वाद्य यंत्रों से भर दिया जाएगा। मुकेश के आलाप करते ही सब चौंक गए, किन्तु रेकार्डिंग जारी रहा। गाने की रेकॉर्डिंग समाप्त होने पर पता चला कि संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल यही चाहते भी थे। राग पहाड़ी पर आधारित यह गीत आप भी सुनिए। 

फिल्म ‘मिलन’ : "सावन का महीना पवन करे सोर..." राग पहाड़ी पर आधारित 

दोस्तों, मुकेश जी को जहाँ हम दर्द भरे गीतों का गायक मानते हैं, वहीँ संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी उन्हें "अपने गीतों का सही गवैया" मानते हैं। जब फिल्म सरस्वती चन्द्र का गीत "चन्दन सा बदन चंचल चितवन..." मुकेश की आवाज़ में रिकॉर्ड होना तय हुआ तो किसी शास्त्रीय गायक ने कल्याणजी से कहा- "हम जैसे सुरों के साधक बसों में धक्के खाते फिरते है और मुकेश एक फिल्मी पार्श्वगायक होकर मर्सिडीज़ में कैसे चलते हैं? उस वक्त तो कल्याणजी चुप रहे, मगर गाना रिकॉर्ड होने के बाद जब उन्हें सुनाया तो बोले "अब समझ में आया मुकेश मर्सिडीज़ में क्यों चलते हैं”? मुकेश बिना किसी ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) के राग आधारित गीत खूब गा लेते थे। दरअसल ये मुकेश जी का शास्त्रीय संगीत के प्रति लगाव ही था जो ऐसे गीत उनके होंठ लगते ही सुसज्जित हो उठते हैं। गायन की जो कुछ भी शिक्षा उन्होंने पायी, वो शुरुआती दिनों (१९४०-१९४५) में पंडित जगन्नाथ जी से मिली। अब आपको जो गीत सुनाया जा रहा है, वह राग कल्याण पर आधारित है।  

फिल्म ‘सरस्वती चन्द्र’ : "चन्दन सा बदन चंचल चितवन..." : राग कल्याण पर आधारित

संगीतकार रोशन और गायक मुकेश न केवल फ़िल्मी दुनिया में एक दूसरे के व्यावसायिक तौर पर मित्र थे अपितु दोनों बचपन में एक ही विद्यालय के सहपाठी भी थे। जब भी कभी कोई विद्यालय में संगीत, नाटक इत्यादि कार्यक्रम का आयोजन होता, दोनों लोग ज़रूर शरीक होते। जहाँ मुकेश गीत गाते वहीँ रोशन संगीत की बागडोर सँभालते, उनका बखूबी साथ निभाते थे। तो आइये क्यूँ न एक बहुत ही लोकप्रिय गीत सुना जाये जो इन दो कलाकारों द्वारा सृजित किया गया है। इस गीत के बनने का किस्सा बड़ा ही दिलचस्प है। इन्दीवर के लिखे इस गीत के लिए रोशन ने कुछ धुन तैयार की थी मगर उन्हें कुछ पसंद नहीं आ रहा था। यूँ लगता था मानो कुछ कमी है, कुछ नया होना चाहिए जो उस समय के माझी, नाव, नदी आदि गीतों की धुनों से अलग हो। करीब पूरा महीना बीत गया मगर कुछ बात नहीं बनी। ऐसे में अचानक एक दिन रोशन, मुकेश और इन्दीवर के साथ अपना हारमोनियम लेकर कार से सैर पर निकले। एक जगह तालाब दिखा तो बैठ कर कुछ क्षण बिताने का मन हुआ। रोशन ने जैसे ही अपना पांव तालाब के शीतल जल में डाला, अचानक दोनों साथियों से बोल पड़े- "धुन बन रही है", जल्दी से कार से हारमोनियम लाये और वहीँ बैठे तीनों ने मिल कर गीत के संगीत की रचना कर डाली। अगले ही दिन स्टूडियो में जाकर यह गीत रिकॉर्ड हो गया। यह गीत लोक-धुन की सोंधी खुशबू से सराबोर है। 

फिल्म ‘अनोखी रात’ : “ओह रे ताल मिले नदी के जल में..." : लोक संगीत पर आधारित  

 मुकेश के गाये गीतों में राग-आधारित अनेक गीत लोकप्रिय हुए। इन गीतों में राग भैरवी और तिलक कामोद के स्वरों में गाये गीतों की संख्या अधिक हैं। ये दोनों राग उनकी आवाज़ में बहुत अच्छे भी लगते हैं। अब चलते-चलते राग भैरवी के सुरों पर आधारित एक प्यारा सा गीत आपको सुनाते हैं। यह गीत 1966 की फिल्म तीसरी कसम का है, जिसे मुकेश ने अपना स्वर दिया था। बीच-बीच में राज कपूर की आवाज भी है। इस गीत में लोक संगीत का स्पर्श है और भैरवी के स्वर भी मौजूद हैं। 

फिल्म ‘तीसरी कसम’ : “दुनिया बनाने वाले..." : राग भैरवी पर आधारित

शोध व आलेख- पंकज मुकेश 

आभार- कृष्णमोहन मिश्र 

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