Saturday 3 July 2021

जब मुकेश की आवाज़ ने मिलाया भरत व्यास को उनके खोये बेटे से

मुकेश और भरत व्यास का साथ

जुलाई को स्मृति विशेष-भरत व्यास

साथियों कई सालों बाद आज 4 जुलाई को आप सब से रू-बा-रू हो रहा हूँ, क्यूंकि आज का दिन कुछ विशेष है I जी हाँ आज ही के दिन 1982 में भारत के एक महान गीतकार पंडित भरत व्यास जी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था I प्रथम दृष्टि में भरत व्यास जी को मेरे जैसे कोई भी साधारण संगीत प्रेमी से उनका परिचय पूछा जाय तो सबसे पहले यही बात ध्यान आता है कि वो गीतकार, जिसने उर्दू की दुनिया यानि कि गीत-संगीत और फिल्म नगरी में रह कर भी उर्दू से परहेज किया I भरत व्यास के गीतों में उर्दू शब्दों को खोजना, मानों रेत में सुई खोजने के समान है I मुझे व्यास जी का एक बेहद ही मशहूर गीत याद आ रहा हैं, जिसमें हिंदी के शब्दों के साथ-साथ उर्दू शब्दों का भी प्रयोग मिलता है, जो एक असाधारण बात है I

वो गीत है- ऐ मालिक तेरे बंदे हम- दो आँखें बारह हाथ-1957 I इस गीत में कुछ उर्दू और गैर-हिंदी शब्द जैसे-ज़ुल्मों, बदी, बेखबर, नज़र इत्यादि I ये गीत इतना ज्यादा प्रसिद्द हुवा कि बहुत जल्द ही व्यास जी को प्रार्थना गीतों के गीतकार की पहचान दिला दी I ये गीत न केवल भारत में बल्कि पकिस्तान, श्री लंका इत्यादि पड़ोसी देशों में गाया और सुना गया, यहाँ तक कि इन् देशों के कई विद्यालयों में प्रतिदिन प्रार्थना सभा में बच्चों द्वारा गाया जाता रहा I व्यास जी का लिखा एक और गीत को उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा वहाँ की विद्यालयों में एक प्रार्थना गीत के रूप में स्वीकृति मिली 1990 के आस पास वो गीत, मेरे और इस संसार के सबसे सुन्दर और मधुर आवाज़ के मालिक, प्रसिद्ध गायक मुकेश जी ने गाया था, फ़िल्म संत ज्ञानेश्वर से-जोत से जोत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो I वैसे तो इस गीत का एक और महिला संस्करण लता मंगेशकर की आवाज़ में फिल्म में एक बाल कलाकार के लिए प्रयोग किया गया, मगर मुख्य संस्करण तो मुकेश जी का ही सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त और प्रचलित हुवा I

अब आते हैं आज के मुख्य विषय पर I बात कुछ यूँ है कि समझ लीजिये की कुछ फ़िल्मी अंदाज़ में एक घटना घटी, वो भी गीतकार भरत व्यास जी के साथ I जब वो अपने फ़िल्मी सफ़र के सफलतम दिनों में नयी ऊंचाइयां प्राप्त कर रहे थे, तभी अचानक उनका जवान बेटा (श्याम सुंदर व्यास) उनसे किसी बात पर रूठ कर घर छोड़ कर कहीं चला गया, वो भी लम्बे समय तक काफी तलाश करने पर भी कुछ पता नहीं चला I ये बात व्यास जी को अन्दर से कमज़ोर कर दिया, मानोअब फ़िल्मी दुनिया और गीत संगीत से उनका मन विचलित हो गया I हमेशा बेटे की याद, चिंता और मन में एक कसक उनको परेशान करती रहती I अंततः उन्होंने फिल्मों से अघोषित संन्यास सा ले लिया I

एक दिन अचानक निर्माता सुभाष देसाई जी (फिल्म निर्माता मनमोहन देसाई के बड़े भाई) उनके पास अपनी आने वाली एक फिल्म में गाने लिखने का निमंत्रण दिया, जिसे उन्होंने अपने बेटे के बिछड़ने के दुखः को जताते हुवे तत्काल ही अस्वीकार कर दिया I फिर कुछ दिन बाद सुभाष देसाई जी ने व्यास जी के छोटे भाई (बृज मोहन व्यास-जो पुराने फिल्मों में रावण या खलनायक की भूमिकाओं के लिए चर्चित थे) को लेकर उसी फिल्म में अभिनय की दृष्टि से बात की I बृज मोहन व्यास जी ने तो हाँ कर दी, मगर देसाई साहब ने एक शर्त दी, वो ये कि वो फिल्म तभी बनाएँगे जब इनके भाई भरत व्यास जी उसमें गाना लिखेंगे I
अब ये तो बड़ा मुश्किल सी बात हो गयी, मगर बृज मोहन व्यास साहब ने कहा कि वो भारत व्यास जी को इस बात के लिए मनाएंगे.
बहुत ही कठिन प्रयास के बाद वो मान गए इस बात पे कि, जो उनकी मनः परिस्थिति है वही स्थिति इस फिल्म में है I यानी एक पिता को उसके बेटे के बिछड़ने का ग़म, अर्थात पुत्र-वियोग. अब क्या था, भरत व्यास जी ने अपनी सारी मनः स्थिति और दशा उस गीत में डाल कर गीत को लिख् डाला, इस उम्मीद से कि शायद ये देख उनका खोया बेटा वापस घर आ जाए पर ये हो न सका. वो गीत था-लता और रफ़ी की आवाज़ में फिल्म जनम जनम के फेरे- जरा सामने तो आ छलिये, (.... पिता अपने बालक से बिछड़ के सुख से कभी न सो सकता...) I

फिर अगले ही साल एक और फिल्म-रानी रूपमती के गीत लिखने का संयोग हुवा और यहाँ भी वही परिस्थिति बनी, वही वियोग I मगर इस बार पुत्र-वियोग विषय के बजाय नायक-नायिका का वियोग था I और तो और इस गीत में जान डाली उस गीत में छुपी आवाज़ ने I जी हाँ वो गीत था, आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं ये गीत इतना ज्यादा असरदार बना कि व्यास जी का खोया बेटा वापस घर आ गया I
यहाँ बात महत्वपूर्ण ये है की पुत्र वियोग के पश्चात वही गीतकार ने गीत लिखे, प्रेम, करुणा सब वैसे ही भरा गया, मगर जब इस गीत के शब्दों को, इस धरती के सबसे बड़े "दर्द भरे गीतों के सरताज़ गायक"- मुकेश जी के कंठ से निकले तो हर किसी के दिल में एक गहरा असर करती है I और इस आवाज़ का असर ये हुवा की बरसों से बिछड़ा बेटा वापस घर आ गया I ये गीत इतना अत्यधिक प्रभावशाली हैं किआज तक भी लोगों के मन में जुदाई और विदाई में यूं ही होंठों पे आ ही जाता है की-आ लौट के आजा मेरे मीत !
मुकेश जी की आवाज़
का जादू तो कुछ ऐसा है कि एक बार तो एक लड़की बहुत बीमार हो गयी और कोई दवा असर नहीं कर रही थी I उस लड़की के माता-पिता ने जब चिकित्सक को बताया कि उनकी बेटी मुकेश जी के आवाज़ को बहोत जी-जान से पसंद करती है, और माता-पिता ने चिकित्सक से आग्रह किया कि अगर शायद मुकेश जी खुद उनकी बेटी को अपना गाना सुनाये तो शायद कुछ असर हो I चिकित्सक ने भी उस आग्रह को सम्मान देते हुवे स्वीकार कर, मुकेश जी से सारी बात बताईI
फिर क्या था, अगले सुबह मुकेश जी सही समय पर चिकित्सालय में पहुँच, उस बीमार बच्ची को घंटों गाना सुनाया, बड़े प्यार से बातें की. मुकेश जी को अपने सामने, अपने आँखों से गाता देख उस बच्ची में जाने क्या असर हुवा की वो बच्ची जल्द ही स्वस्थ हो गई I जो एक चमत्कार ही था.
अब तो हम कह सह सकते हैं कि मुकेश जी की आवाज़ न केवल बड़ी प्यारी आवाज़
है, बल्कि वो तो बड़ी ही चमत्कारी आवाज़ भी है.
भरत व्यास जी के यादों को समेटते हुवे उनके पुण्य-स्मृति दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि !!!!

मुकेश जी के साथ भारत व्यास, वी. सांताराम और विट्ठल भाई पटेल (गीत ये कौन चित्रकर है-बूंद जो बन गई मोती फिल्म)