Thursday 31 January 2013

 मुकेश के राग-अनुराग 
मित्रों नमस्कार। नया साल की हार्दिक बधाइयां, और साथ में आशा करता हूँ की आप सभी के जीवन में कुछ नया और रोचक पढ़ाव आये जिससे पूरे वर्ष ख़ुशी और उल्लास का वातावरण आप सभी के साथ बना रहे ! अरे हाँ "नया और रोचक पढ़ाव" से याद आया कि हमारे फिल्म संगीत के दुनिया में भी इस तरह के नए और रोचक किस्से पढ़ने और सुनने को मिलते हैं। अब जो बात मेरे मन में चल रही है वो बहुत पुरानी है। आप सोच रहे होंगे कि जब पुरानी बात है तो रोचक कैसे? दरअसल बात ही कुछ ऐसी है की शायद ही आप लोगों ने कभी सुना होगा या फिर सुन कर विश्वास नहीं करेंगे। शुरू में ही शीर्षक ने आपको संकेत जरूर दे दिया होगा की हम वो रोचक बात गायक मुकेश (मुकेश चन्द्र माथुर) की कर रहे हैं। दुनिया उन्हें हमेशा "दर्द भरे गीतों का सरताज" की उपाधि से जानती है, मगर मेरी नज़र में वो केवल गायक ही नहीं बल्कि अभिनेता, निर्माता और संगीतकार भी थे। सही बात है की की वो विश्व विख्यात हुवे अपने गाये गीतों से ही। है न अचरज की बात? बात भले ही पुरानी है मगर नयी लगी अब रोचक कैसे है, इसका हम आगे चर्चा करेंगे पहले सुनिए उन्ही का गया, उन्ही पर फिल्माया एक ग़ज़ल -कोई दिल में है ...किसे याद रखूं किसे भूल जाऊं- फिल्म अनुराग से जिसे लिखा कैफ इरफानी ने, जो राग ....पर आधारित है।
 अब आप समझ ही गए होंगे कि गायक मुकेश अभिनेता भी थे, अनुराग फिल्म जो 1956 में बनी, वो मुकेश का गायक अभिनेता के रूप में उनकी पहली फिल्म नहीं थी। सर्वप्रथम वो परदे पर नज़र आये अपनी पहली फिल्म "निर्दोष"(1941) में नलिनी जयवंत के साथ एक गायक और अभिनेता के रूप में। ये मुकेश जी का सौभाग्य था की उनको भी अपने आराध्य कुंदन लाल सहगल की तरह उस दौर में गायक अभिनेता बनाने का मौका मिल गया। और साथ ही उनको अपनी ज़िन्दगी का पहला एकल गीत- आ स।। दिल ही बुझा हुवा हो तो~~~~और पहला अप्रदर्षित युगल गीत नलिनी जयवंत के साथ गाया-तुम्ही ने मुझको प्रेम सिखाया और पहला प्रदर्शित युगल गीत "मैं हूँ परी, बन की परी" (तुम्ही ने मुझको प्रेम सिखाया और निर्दोष फिल्म के बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे एक गीत सौ कहानियां स्तम्भ में) आपको ये जान कर हैरानी होगी कि गायक मुकेश, गायन के लिए अक्टूबर 1939 में बम्बई (अब मुंबई) नहीं आये थे. दरअसल वो अभिनय को अपना ध्येय बना कर आये थे और साथ में गाते भी बहुत कुशलता से थे सहगल जी को सुन सुन कर। उनके अभिनीत कुछ फिल्में हैं-"निर्दोष"(1941), दुःख सुख (1942), आदाब अर्ज़ (1943), माशूका (1953), अनुराग (1956), आह 1953 (मेहमान कलाकार के रूप में गीत-"छोटी सी ये जिंदगानी" के गाड़ीवान की भूमिका में उन्होंने फिल्म "मल्हार" का निर्माण भी किया "डार्लिंग फिल्म " के बैंनर तले। खैर बातें बहुत सी हैं उनके इस द्विआयामी किरदार के रूप में, जिसकी चर्चा फिर कभी करेंगे, क्यूँकि मुकेश जैसे कलाकार के लिए 10-12 पंक्तिया कदापि पर्याप्त नहीं। चलिए अब आपको उन्ही का गाया और फिल्माया इसी फिल्म का दूसरा गीत सुनवाते है- "पल भर ही की पहचान में परदेसी सनम से" जिसे लिखा इन्दीवर ने, जो राग ....पर आधारित है।

पिछले दो गानें सुन कर आप लोग बहुत कुछ समझ गए होंगे, मुकेश जी की गायन प्रतिभा के साथ, उनके अभिनय शैली को भी मन में कल्पना कर आत्मसात भी कर लिए होंगे। मगर सबसे पहली बात तो ये आप लोग यकीन से जान ही गए होंगे की आज हम बातें करने जा रहे हैं मुकेश की फिल्म अनुराग के बारे में। जी हाँ "अनुराग" जो सन 1956 में "मुकेश फिल्म्स" के बैंनर तले बनी, इसे गायक मुकेश ने बनाया और संगीत भी दिया साथ में अभिनेता का भी किरदार निभाया। ये फिल्म प्रेम त्रिकोण पर आधारित थी, जिसे निर्देशित किया था मधु सुदन नें। इस फिल्म के बाकि अन्य कलाकारों में शामिल हैं-मृदुला, उषा किरण, प्रतिमा, शिव राज, उमा देवी (अब टुन टुन) इत्यादि। इसके गीत जारी हुवे थे H. M. V. (EMI) पर आइये अब आपको सुनवातें है इसी फिल्म का एक बहुत ही लोकप्रिय गीत जिसे गाया है, स्वर सम्राज्ञी और मुकेश जी की मुहबोली बहन लता मंगेशकर नें। "तेरे बिन सूना सूना लागे इस दुनिया का मेला" जिसे लिखा इन्दीवर ने, जो राग ....पर आधारित है।

अब तक मुकेश के गायक के साथ अभिनेता बनने का रहस्य से रू-ब-रू हुवे, अब नज़र डालते हैं उनके फिल्म निर्माण की दास्तान। बात कुछ ऐसे शुरू होती है, अनुराग से पहले भी वो करीब चार फिल्मों में अभिनय-गायन कर चुके थे। सभी फिल्में बहुत ज्यादा कमाल नहीं दिखा सकीं, यूं कहा जाय की कुछ मिला जुला असर रहा, मगर इन सभी फिल्मों में अभिनय तथा उनके अन्य गीतों ने उन्हें खूब शोहरत दी। 1950 तक  उनका फ़िल्मी सफ़र अपने शबाब पर था, दुनिया की नज़रों में उन्होंने खुद को एक सफल गायक के रूप स्थापित कर लिया था । गायकी में उनकी कामयाबी फिल्म पहली नज़र (1945) से शुरू हुई, फिर चेहरा, राजपूतानी (1946), दो दिल , नील कमल, तोहफा (1947),  आग, अनोखा प्यार, अनोखी अदा, मेला, वीणा , विद्या (1948), अंदाज़, बरसात, शबनम, सुनहरे दिन (1950) तक रुकी नहीं । इस दौर में महान गायक मोहम्मद रफ़ी का के साथ किशोर कुमार भी आगमन हो चुका था, मगर शीर्ष पर नाम मुकेश का रहता। फिर क्या था, 1950 तक की कामयाबी ने उन्हें हर तरह के नए फैसले और प्रयोग करने की जैसे छूट भी दे दी थी। उस दौर में वो अपने अन्दर छुपी हर तरह की प्रतिभा को सामने लाने की कोशिश करते थे, गायकी की सफलता ने जैसे उनमें एक जुनून सा भर दिया जो उनके आतंरिक बहुमुखी प्रतिभा को परदे पर लाने के लिए मजबूर कर देता था। अपने ख़ास दोस्त राज कपूर के कला / अभिनय या फिर फिल्म निर्माण को शायद देख उनका भी मन करता होगा कि वो भी राज जैसा कुछ करें। कामयाबी का उत्साह इतना उफान पर था कि जब  उन्हें फिल्म  माशूका (1953) का कंट्राक्ट मिला तो फ़ौरन साईंन कर दी, जिसमें लिखे अनुबंध "जब तक फिल्म माशूका पूरी नहीं हो जाती वो किसी दुसरे निर्माता के फिल्म में गाना भी नहीं गायेंगे" को पढ़ना ही जैसे भूल गए।
बस इसी फैसले ने उनकी फ़िल्मी सफ़र में बहुत बड़ा पड़ाव लगा दिया। यहाँ तक की राज कपूर के लिए वो फिल्म चोरी-चोरी और श्री 420 का गाना "दिल का हाल सुने दिलवाला" नहीं गा सके।  50 के दशक में बावरे-नैन, आवारा, बादल, मल्हार, श्री 420 के सफल गीतों के बावजूद भी मुकेश, रफ़ी साहब से पीछे हो गए, जिनको की 60 के दशक में किशोर कुमार ने पीछे छोड़ दिया।  फिल्म माशूका के गाने और अभिनय में कुल 3 साल लग गए उसी दौरान वो फिल्म निर्माण का निर्णय ले कर खाली समय में अनुराग के जैसे बीज बोने का काम सुरु कर दिया था, क्योंकि ये मुकेश फिल्म्स और उनकी निर्माण की फिल्म थी इसलिए वो कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक स्वतंत्र थे। अब आपके भी मन में फिल्म अनुराग के बनाने की  दास्तान का स्तम्भ  खड़ा हो ही गया होगा। अब वो संगीतकार कैसे बने ? हम बाद में बताएँगे पहले सुनते हैं मुकेश का स्वरबद्ध किया लता जी की मधुरिमा लिए ये गीत- "नज़र मिला कर नज़र चुराना,जिसे लिखा कैफ इरफानी ने, जो राग ....पर आधारित है।

माशूका 1953 में प्रदर्शित हुई, मुकेश को अभिनय की लिहाज़ से कोई खास सफलता भी नहीं मिली। मगर फिर भी गायकी की तुलना में अभिनय को अभी तक सीने से लगाये रखा। निर्माता बनाने का प्रयास उन्होंने अनुराग से शुरू नहीं की, दरअसल 2 साल पहले ही वो फिल्म "मल्हार" 1951 का निर्माण कर चुके थे, जिसके गाने बहुत ही लोकप्रिय हुवे थे। "बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम" मुकेश और लता के आवाज़ से सजा ये गाना मल्हार को हिट साबित करने में मुख्य भूमिका निभाई। मुकेश हमेशा नए कलाकारों को मौका देने के पक्ष में रहते थे, इसीलिए मल्हार में वो केवल गायक और निर्माता बने रहे। अभिनय के लिए चुना नए कलाकार अर्जुन और शम्मी को। और मल्हार की सफलता ने उन्हें एक बार फिर से आगे फिल्मों में पैसा लगाने का फैसला लेने पर बाध्य कर दिया, और फिल्म अनुराग के लगभग हर क्षेत्र का जिम्मा अपने सर ले लिया। फिर चाहे अभिनय हो, गायन हो, निर्माण हो या फिर संगीत का ही क्यूँ न हो ? दुसरे शब्दों में अनुराग पूरी तरह से मुकेश पर आधारित थी।  ठीक इसी तरह संगीतकार बनने का फैसला उनका पहला नहीं था, अनुराग से पहले भी उन्होंने कुछ गैर फ़िल्मी गीत, नज़्म / गज़ल को स्वरबद्ध कर चुके थे, जैसे- जियेंगे मगर मुस्कुरा न सकेंगे (1952-कैफ इरफानी ), दो जुल्मी नैना हम पे जुलम करे (कैफ इरफानी) इत्यादि। शायद यही वजह रही होगी कैफ इरफानी को गीतकार के रूप में इन्दीवर के साथ अनुराग में लेने का। और हाँ एक बार उन्होंने विविद् भारती के अपने इंटरव्यू में कहा था की "हर एक गायक अपने में एक संगीतकार होता हैं। मगर एक संगीतकार जब गायक भी होता हैं तो उसके काम का महत्वपूर्ण बढ़ जाता है", उदहारण के लिए उन्होंने सचिन देव बर्मन, सी रामचंद्र आदि लोगों का नाम लिया।  अब आइये आपको सुनवाते हैं, इसी फिल्म का अगला गीत जिसे एक बार फिर आवाज़ दी है लता जी ने। "जिसने प्यार किया उसका दुश्मन ज़माना"-जिसे लिखा कैफ इरफानी ने, जो राग ....पर आधारित है।

अब चलते-चलते ये भी बता देना चाहूँगा की फिल्म अनुराग को सेंसर सर्टिफिकेट मिला 15 जून 1956 को, तात्पर्य ये है की इस दिन के करीब 10-20 दिन बाद ही ये फिल्म रिलीज़ हुई होगी, जिसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पायी है। इस फिल्म में मुकेश ने कुल 9 गीतों को अपने धुनों में पिरोया था और केवल दो गीतों में अपनी आवाज़ दी। चूँकि फिल्म प्रेम त्रिकोण पर आधारित थी और नायिकाएं दो थी इसलिए महिला स्वर (लता जी का ) का वर्चश्व था, एक और गाना लता गी ने गाया था "मन चल मन चंचल" जिसे लिखा इन्दीवर ने, जो राग ....पर आधारित है।
एक गाना शमशाद बेगम और मधुबाला झावेरी ने गाया था-"आज हम हम तुम्हे सुनाने वाले हैं" लिखा इन्दीवर ने, जो राग ..पर आधारित है।
दूसरा गाना उन्होंने गायक मन्ना डे से गवाया था- "हो सका दो दिलों का ना मेल रे" जिसे लिखा इन्दीवर ने, जो राग ....पर आधारित है। माना जाता है की ये गाना ये गाना मना डे के शैली का था, जिसके लिए मुकेश किसी अन्य या खुद को प्रयोग करनें की सोच ही नहीं सकते थे। एक वाक्या याद आ रहा है यहाँ पर-मन्ना दे जी भी मुकेश की तरह पहले से ही गायकी के साथ फिल्म में संगीत बनाते थे, जब मन्ना दा 1942  में अपनी फिल्म "चमकी" के लिए एक गीत "कैसे ज़ालिम से पड़ गया पाला बिना मौत हमें मार डाला" के लिए मुकेश जी को चुना था, तो अनुराग के लिए मुकेश ने मन्ना दा को याद किया, जिसका खुलासा मुकेश जी हस्ते हुवे किया था-"उन्होंने मुझे याद किया था तो हमने भी उन्हें बुलाया"

आखिरी गीत के बारे में ज्यादा जानकारी हमें प्राप्त नहीं हो पायी बस इतना कह सकते है कि इन्दीवर का लिखा "ये कैसी उलझन है" इसके गायक/गायिका का भी पता नहीं चल पाया है, बस मुकेश जी का गया ये गीत नहीं है। कुल मिला कर मुकेश का फिल्म अनुराग बनाने का अनुभव बड़ा अच्छा रहा, बिना किसी दिक्कत/परेशानी के फिल्म पूरी हुई, रिलीज़ भी भी हुई मगर बॉक्स- आफ़िस के दर्जे से एक असफल फिल्म साबित हुई। जिसकी वजह से मुकेश ने अभिनय/ संगीत निर्माण/ फिल्म निर्माण आदि से तौबा कर लिया और आजीवन केवल गायन पर पूरा ध्यान देने का फैसला कर लिया। और ऐसा हुवा भी  वो अंत तक केवल गायन ही करते रह गए, यहाँ तक की अपनी मृत्यु से 2-3 घंटे पहले भी वो गाने का रियाज़ कर रहे थे। उनके मृत्यु के आखिरी दिन की दास्तान बहुत लम्बी और दर्द भरी है, जिसे हम किसी अन्य अंक में चर्चा करेंगे। अंत में मैं आपको मुकेश जी की ज़िन्दगी का आखिरी कॉन्सर्ट (मुकेश-लता अमेरिका और कनाडा टूर) के पहले दिन और उनकी ज़िन्दगी की आखिरी दिन से एक दिन पहले यानि 26 अगस्त 1976 की रेकार्डिंग सुनवा रहे हैं, जिससे यह बिलकुल स्पष्ट होता है की इन दो महान कलाकारों में कितना मधुर प्रेम और भाई बहन का गहरा रिश्ता था।

REFERENCES -
http://www.bollywoodhungama.com/moviemicro/cast/id/538824

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